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Last Modified: शनिवार, 12 फेब्रुवारी 2022 (16:42 IST)

Kumbh Sankranti 2022 कुंभ संक्रांतीच्या दिवशी सूर्य आपली गती बदलेल, फक्त ही एक गोष्ट केल्यास सूर्यदेवाची कृपा प्राप्त होईल

Kumbh Sankranti 2022 : सूर्य देवाचा एका राशीतून दुसऱ्या राशीत प्रवेश होण्याला संक्रांती म्हणतात. आणि ज्या राशीत सूर्य त्याच राशीत प्रवेश करतो, तिथे संक्रांती येते. 13 फेब्रुवारीला सूर्य ग्रह मकर राशीतून कुंभ राशीत प्रवेश करणार आहे, त्यामुळे याला कुंभ संक्रांती 2022 म्हणून ओळखले जाईल. सूर्य, या राशी बदलाचा परिणाम अनेक राशींवर होईल आणि हे बदल या लोकांच्या जीवनात पाहायला मिळतील.
 
13 फेब्रुवारीनंतर सूर्य देवाच्या राशी बदलामुळे अनेक राशीच्या लोकांसाठी वाईट गोष्टी घडू लागतील. त्याचबरोबर नोकरी-व्यवसायात प्रगती आणि प्रगतीच्या संधी मिळतील. सध्या कुंभ राशीत गुरु देखील आहे. जो कुंभ राशीच्या लोकांसाठी शुभ योगायोग ठरत आहे. जर तुम्हालाही कुंभ संक्रांतीच्या दिवशी सूर्यदेवाची आशीर्वाद मिळवायची असतील तर या दिवशी सूर्य चालीसा अवश्य पाठ करा.
 
सूर्य चालीसा पाठ (Surya Chalisa Path)
दोहा:
कनक बदन कुंडल मकर, मुक्ता माला अंग।
 
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के संग।।
 
चौपाई:
 
जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।
 
भानु, पतंग, मरीची, भास्कर, सविता, हंस, सुनूर, विभाकर।
 
विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तण्ड, हरिरूप, विरोचन।
 
अम्बरमणि, खग, रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।
 
सहस्रांशु, प्रद्योतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।
 
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़‍ि रथ पर।
 
मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।
 
उच्चैश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते।
 
मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता,
 
सूर्य, अर्क, खग, कलिहर, पूषा, रवि,
 
आदित्य, नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै।
 
द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै।
 
चार पदारथ सो जन पावै, दुख दारिद्र अघ पुंज नसावै।
 
नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर कौ कृपासार यह।
 
सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।
 
बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते।
 
उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।
 
छन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबलमोह को फंद कटतु है।
 
अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते।
 
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देश पर दिनकर छाजत।
 
भानु नासिका वास करहु नित, भास्कर करत सदा मुख कौ हित।
 
ओठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे।
 
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्मतेजसः कांधे लोभा।
 
पूषा बाहु मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर।
 
युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्मं सुउदरचन।
 
बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटि मंह हंस, रहत मन मुदभर।
 
जंघा गोपति, सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा।
 
विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी।
 
सहस्रांशु, सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे।
 
अस जोजजन अपने न माहीं, भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं।
 
दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै।
 
अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता।
 
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही।
 
मन्द सदृश सुतजग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके।
 
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा।
 
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटत सो भव के भ्रम सों।
 
परम धन्य सो नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।
 
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मध वेदांगनाम रवि उदय।
 
भानु उदय वैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।
 
यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता।
 
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं।
 
दोहा:
 
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।
 
सुख सम्पत्ति लहै विविध, होंहि सदा कृतकृत्य।।