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Last Modified: मंगळवार, 14 मार्च 2023 (12:13 IST)

शीतला चालीसा Sheetala Chalisa

Sheetla Mata Temple
॥ दोहा॥
जय जय माता शीतला ,
तुमहिं धरै जो ध्यान ।
होय विमल शीतल हृदय,
विकसै बुद्धी बल ज्ञान ॥
 
घट-घट वासी शीतला,
शीतल प्रभा तुम्हार ।
शीतल छइयां में झुलई,
मइयां पलना डार ॥
 
॥ चौपाई ॥
जय-जय-जय श्री शीतला भवानी ।
जय जग जननि सकल गुणधानी ॥
 
गृह-गृह शक्ति तुम्हारी राजित ।
पूरण शरदचंद्र समसाजित ॥
 
विस्फोटक से जलत शरीरा ।
शीतल करत हरत सब पीड़ा ॥
 
मात शीतला तव शुभनामा ।
सबके गाढे आवहिं कामा ॥4॥
 
शोक हरी शंकरी भवानी ।
बाल-प्राणक्षरी सुख दानी ॥
 
शुचि मार्जनी कलश करराजै ।
मस्तक तेज सूर्य सम साजै ॥
 
चौसठ योगिन संग में गावैं ।
वीणा ताल मृदंग बजावै ॥
 
नृत्य नाथ भैरौं दिखलावैं ।
सहज शेष शिव पार ना पावैं ॥8॥
 
धन्य धन्य धात्री महारानी ।
सुरनर मुनि तब सुयश बखानी ॥
 
ज्वाला रूप महा बलकारी ।
दैत्य एक विस्फोटक भारी ॥
 
घर घर प्रविशत कोई न रक्षत ।
रोग रूप धरी बालक भक्षत ॥
 
हाहाकार मच्यो जगभारी ।
सक्यो न जब संकट टारी ॥12॥
 
तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा ।
कर में लिये मार्जनी सूपा ॥
 
विस्फोटकहिं पकड़ि कर लीन्हो ।
मूसल प्रमाण बहुविधि कीन्हो ॥
 
बहुत प्रकार वह विनती कीन्हा ।
मैय्या नहीं भल मैं कछु कीन्हा ॥
 
अबनहिं मातु काहुगृह जइहौं ।
जहँ अपवित्र वही घर रहि हो ॥16॥
 
अब भगतन शीतल भय जइहौं ।
विस्फोटक भय घोर नसइहौं ॥
 
श्री शीतलहिं भजे कल्याना ।
वचन सत्य भाषे भगवाना ॥
 
पूजन पाठ मातु जब करी है ।
भय आनंद सकल दुःख हरी है ॥
 
विस्फोटक भय जिहि गृह भाई ।
भजै देवि कहँ यही उपाई ॥20॥
 
कलश शीतलाका सजवावै ।
द्विज से विधीवत पाठ करावै ॥
 
तुम्हीं शीतला, जगकी माता ।
तुम्हीं पिता जग की सुखदाता ॥
 
तुम्हीं जगद्धात्री सुखसेवी ।
नमो नमामी शीतले देवी ॥
 
नमो सुखकरनी दु:खहरणी ।
नमो- नमो जगतारणि धरणी ॥24॥
 
नमो नमो त्रलोक्य वंदिनी ।
दुखदारिद्रक निकंदिनी ॥
 
श्री शीतला , शेढ़ला, महला ।
रुणलीहृणनी मातृ मंदला ॥
 
हो तुम दिगम्बर तनुधारी ।
शोभित पंचनाम असवारी ॥
 
रासभ, खर , बैसाख सुनंदन ।
गर्दभ दुर्वाकंद निकंदन ॥28॥
 
सुमिरत संग शीतला माई,
जाही सकल सुख दूर पराई ॥
 
गलका, गलगन्डादि जुहोई ।
ताकर मंत्र न औषधि कोई ॥
 
एक मातु जी का आराधन ।
और नहिं कोई है साधन ॥
 
निश्चय मातु शरण जो आवै ।
निर्भय मन इच्छित फल पावै ॥32॥
 
कोढी, निर्मल काया धारै ।
अंधा, दृग निज दृष्टि निहारै ॥
 
बंध्या नारी पुत्र को पावै ।
जन्म दरिद्र धनी होइ जावै ॥
 
मातु शीतला के गुण गावत ।
लखा मूक को छंद बनावत ॥
 
यामे कोई करै जनि शंका ।
जग मे मैया का ही डंका ॥36॥
 
भगत ‘कमल’ प्रभुदासा ।
तट प्रयाग से पूरब पासा ॥
 
ग्राम तिवारी पूर मम बासा ।
ककरा गंगा तट दुर्वासा ॥
 
अब विलंब मैं तोहि पुकारत ।
मातृ कृपा कौ बाट निहारत ॥
 
पड़ा द्वार सब आस लगाई ।
अब सुधि लेत शीतला माई ॥40॥
 
॥ दोहा ॥
यह चालीसा शीतला,
पाठ करे जो कोय ।
सपनें दुख व्यापे नही,
नित सब मंगल होय ॥
 
बुझे सहस्र विक्रमी शुक्ल,
भाल भल किंतू ।
जग जननी का ये चरित,
रचित भक्ति रस बिंतू ॥
॥ इति श्री शीतला चालीसा ॥