आरती सद्गुरूरायाची
श्रीवासुदेवानंद सरस्वती टेंबेस्वामींची आरती
आरती सद्गुरूरायाची।
करिता सद्भावे साची।।धृ।।
तनमन अर्पूनी हो गुरूला।
प्रेमे ओवाळू त्याला।
पंचप्राणांच्या वाती।
लावूनी नेत्रांच्या पाती।
मन हे स्थिर करुनि पहा।
रेवा तिरी सद्गुरू हा।
"चाल"
दुसरा देव नसे ऐसा।
भक्तजनांच्या पुरवुनी आशा।
सोडूनि जाती संस्कृती पाशा।
धरू हो कास आम्ही त्याची।
असे ही कामधेनु आमुची।।१।।
ध्यान हे रम्य किती दिसते।
धरी हो हाती दंडा ते।
भाळी भस्माच्या रेषा।
शोभती तीन पहा कैशा।
कटी पदी पर तो झळकतसे।
कौपिन रम्य किती भासे।
कमंडलू तो वंशाचा।
हाती शोभतसे साचा।
" चाल " विधीहरिहर हे त्रयमूर्ती।
दत्तची ऐसे, मजला भासे, मन्मनिच वसे।
मूर्ती मनहरणी साची।
असे ही कामधेनू आमुची।।२।।
दयाळू कितीतरी मी सांगू।
वाणी होत असे पंगू।
केवळ ज्ञानाचा भानू।
तियेचे गुण किती वर्णू।
स्वामी वासुदेवराया।
सतत मी शरण तुझे पाया।
वासुदेव करी आरती।
दिधली सद्गुरूंने स्फूर्ती।
"चाल" स्वामी सद्गुरूरायाची।
करिता आरती, दूर्दिन जाती, सुदिन भासती, पहा प्रचीती।
सत्ता सर्व ही सद्गुरूंची।
असे ही कामधेनू आमुची।।३।।
श्रीगुरूदेव दत्त.