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Last Modified: रविवार, 28 सप्टेंबर 2025 (05:00 IST)

महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र अय गिरिनंदिनी नंदितमेदिनी

Mahishasur Mardini Stotram Maa Durga Mantra
महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र हे नवरात्रीच्या काळात देवी आईचे सर्वाधिक ऐकलेले आणि वाचले जाणारे संस्कृत श्लोक आहे. हे स्तोत्र वाचल्याने देवीआईचा आशीर्वाद मिळतो. भक्तांचे सर्व संकट दूर होतात. भक्तांनी हे स्तोत्र आवर्जून वाचावे. 
 
अय गिरिनंदिनी नंदितमेदिनी विश्वविनोदिनी नंदिनुते
गिरिवरविंध्यशिरोधिनिवासिनी विष्णुविलासिनी जिष्णुते ।
हे भगवान शिव, हे शितिकंठ परिवार, भूरी परिवार, भूरीकृते
, जय, हे महिषासुरमर्दिनी, रम्यकपर्दिनी शैलसुते. ॥1॥
 
सुरवरवर्षिणी दुर्धरदर्शिनी दुर्मुखमर्षिनी हर्षरते
त्रिभुवनपोशिनी शंकरतोशिनी किलबिष्मोशिनी घोषराते
दनुजनिरोशिनी दितीसुतरोशिनी दुर्मदशोशिनी सिंधुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते. ॥2॥
 
आयी जगदंब मदंबा कदंब वनप्रियवासिनी हसरेते
शिखरी शिरोमणी तुंगीमालय शृंगानिजलय मध्यगते.
मधुमधुरे मधुकटभगंजिनी कैतभंजिनी रसरेते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते ॥ 3॥
 
अय शतखंड विखंडितुंड वितुंडितशुंड गजाधिपते
रिपुगजगंड विदारणचंद पराक्रमशुंड मृगाधिपते ।
निजभुजदंड निपातितखंड विपतितमुंड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते ॥ 4॥
 
आयी रानदुरमाद शत्रुवद्धोदित दुर्धारनिर्जर शक्तिभ्रते
चत्वृविचार धुरीनमहाशिव दूतकरित प्रम्थादिपते।
दुरितदुरिह दुरशायदुर्मती दानवदुत कृतांतमते
जय जय महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते ॥ 5॥
 
हे शरणागत वैरवधुवर वीरवरभय दयाकरे
त्रिभुवनमस्तक शूलविरोधी शिरोधिकृतमाल शुल्कारे.
दुमिदुमितमर धुंदुभिनादमहोमुखारीत दिनमकरे
जय जय महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते ॥ 6॥
 
आयी निजहुंकृती केवळ निराकृत धुम्रवलोचन धुम्रुषते
समरबशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।
शिव शिव शुंभ निशुंभ महाहव तर्पितभूत पिशाचरते
जय जय महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते ॥ 7 ॥
 
धनुर्नुषंग रणक्षंसांग परिस्फुर्दंग नटटक्के
कनकपिशंग प्रिशातकनिषंग रसभत्सृंगा हताबतुके ।
कृतचतुरंग बालक्षितिरंग घटदबहुरंग रतडबटूके
जय जय महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते ॥ 8॥
 
सुरलालना ततथेय तथयि कृतभिनोदर नृत्यरे
कृत कुकुथाः कुकुथो गद्दादिकटल कुतुहल गणरेते.
धुधुकुट धुक्कुट धिंडमित ध्वनी धीर मृदंग निनादर्ते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते ॥ 9॥
 
जय जय जप्या जयजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते
झांझंझंझिमि झंकृत नूपुरशिंजितमोहित भूपते ।
नटित नटर्द नट नट नायक नटित नाट्य सुगनार्ते
जय जय महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते ॥ 10 ॥
 
आयी सुमनहसुमनहसुमनः सुमनहसुमनोहरकांतीयुते
श्रीतर्जनी राजनीरजनी राजनीरजनी करवक्त्रवृते ।
सुनयनविभ्रमर भ्रामरभ्रमर भ्रामरभ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते ॥ 11 ॥
 
साहित्यमहाव मल्लमतल्लीक मल्लितरल्लक मल्लरते
विरचितवल्लीक पल्लिकमल्लीक झिलिकभिल्लिक वर्गवृते.
शितकृतफुल्लसमुल्लासितरुण तल्लजपल्लव सल्ललिते
जय जय महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते ॥ 12 ॥
 
अविरलगंड गलनम्मादमेदुर मत्तमतंग जरजपते
त्रिभुवनभूषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।
हे सुदतिजन लाल समानास मोहन मन्मथराजसुते
जय जय महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते. ॥13 ॥
 
कमलदलामल कोमलकांती कलकलितमल भलालते
सकलविलास कलानिलायक्रम केलिचलतकल हंसकुले ।
अलिकुलसंकुल कुवलयमंडल मौलीमिलादबकुललिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते. ॥14 ॥
 
करमुर्लीरव विजितकुजित लज्जितकोकिल मंजुमते
मिलितपुलिंद मनोहरगुंजीत रणजितशैल निकुंजगते. जय जय जय महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते
ज्या महापुरुषांना पुण्य लाभते.॥15.॥
 
कटीतत्पीत दुकुलविचित्र मयुख्तीरस्कृत चंद्ररुचे प्रणतसुरासूर मौलीमनीस्फुर दानशूलसन्नख चंद्ररुचे जितकंकचल मौलिमदोरजित निर्हपनकुंजर कुंभकुचे जय जय हे महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते. ॥16 ॥ 
 
विजितसहस्रकार सहस्रकारिक सहस्रकारैकनुते कृतसुरतारका संगरतारका संगरतारक सुनुसुते. सुरथसमाधी, समनसमाधी, समाधीसमाधी, सुजातरते. जय जय हे महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते ॥ 17 ॥
 
 पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योनुदिनम् सुशिवे आयी कमले कमलनिलये कमलानिलय सा कथन न भवेत्. तव पदमेव परमपद्मित्यनुशिलयतो मम किं न शिव जय जय महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते ॥ 18 ॥
 
 कंकलासत्कलसिंधुजलैरानुशिंचति तेगुणरंगभुवम् भजति सा किं न शचिकुचकुंभतति परिरंभसुखानुभवम् । मी स्वतःला तुझ्या चरणी शरण जाऊन नटमारवाणीत वास करतो, भगवान शिव, जय जय महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते. ॥19 ॥ 
 
तव विमलेन्दुकुलम् वदनेन्दुमलम् सकलम् नानु कुलयते किमू पुरुहुत्पुरिन्दु मुखी सुमुखिभिरसौ विमुखीक्रियाते । मम तू मातम शिवनामधने भवति कृपया किमुत क्रियाते जय जय हे महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते.॥ 20॥  
 
आयी मायी दीन दयालुत्या कृपायव त्वया भवितव्यमुमे आयी जगतो जननी कृपासि यथासि तथनुमितासिरेते । यदुचित्मात्रा भवत्युरिकुरुतादुरुतापंपकुरुत्ते जय जय महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनी शैलसुते ॥ 21 ॥
 
Edited By - Priya Dixit