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Last Modified: शुक्रवार, 3 डिसेंबर 2021 (17:20 IST)

श्री शनि चालीसा Shri Shani Chalisa

॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल ।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल ॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज ।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज ॥
 
॥ चौपाई ॥
जयति जयति शनिदेव दयाला ।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥
 
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै ।
माथे रतन मुकुट छबि छाजै ॥
 
परम विशाल मनोहर भाला ।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥
 
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके ।
हिय माल मुक्तन मणि दमके ॥ ४॥
 
कर में गदा त्रिशूल कुठारा ।
पल बिच करैं अरिहिं संहारा ॥
 
पिंगल, कृष्णों, छाया नन्दन ।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन ॥
 
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा ।
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ॥
 
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं ।
रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं ॥ ८॥
 
पर्वतहू तृण होई निहारत ।
तृणहू को पर्वत करि डारत ॥
 
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो ।
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ॥
 
बनहूँ में मृग कपट दिखाई ।
मातु जानकी गई चुराई ॥
 
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा ।
मचिगा दल में हाहाकारा ॥ १२॥
 
रावण की गतिमति बौराई ।
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥
 
दियो कीट करि कंचन लंका ।
बजि बजरंग बीर की डंका ॥
 
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा ।
चित्र मयूर निगलि गै हारा ॥
 
हार नौलखा लाग्यो चोरी ।
हाथ पैर डरवाय तोरी ॥ १६॥
 
भारी दशा निकृष्ट दिखायो ।
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो ॥
 
विनय राग दीपक महं कीन्हयों ।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों ॥
 
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी ।
आपहुं भरे डोम घर पानी ॥
 
तैसे नल पर दशा सिरानी ।
भूंजीमीन कूद गई पानी ॥ २०॥
 
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई ।
पारवती को सती कराई ॥
 
तनिक विलोकत ही करि रीसा ।
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा ॥
 
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी ।
बची द्रौपदी होति उघारी ॥
 
कौरव के भी गति मति मारयो ।
युद्ध महाभारत करि डारयो ॥ २४॥
 
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला ।
लेकर कूदि परयो पाताला ॥
 
शेष देवलखि विनती लाई ।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ॥
 
वाहन प्रभु के सात सजाना ।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ॥
 
जम्बुक सिंह आदि नख धारी ।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ॥ २८॥
 
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं ।
हय ते सुख सम्पति उपजावैं ॥
 
गर्दभ हानि करै बहु काजा ।
सिंह सिद्धकर राज समाजा ॥
 
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै ।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै ॥
 
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी ।
चोरी आदि होय डर भारी ॥ ३२॥
 
तैसहि चारि चरण यह नामा ।
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा ॥
 
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं ।
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं ॥
 
समता ताम्र रजत शुभकारी ।
स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी ॥
 
जो यह शनि चरित्र नित गावै ।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ॥ ३६॥
 
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला ।
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ॥
 
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई ।
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ॥
 
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत ।
दीप दान दै बहु सुख पावत ॥
 
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा ।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ॥ ४०॥
 
॥ दोहा ॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों भक्त तैयार ।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ॥