बुधवार, 4 डिसेंबर 2024
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श्री शनैश्चर स्तोत्र

श्री:।। अस्य श्रीशनैश्चरस्तोत्रस्य दशरथ ऋषि: शनैश्चरो देवता त्रिष्टुपछंद: शनैश्चर-प्रीत्यर्थे जपे विनियोग:।।
 
दशरथ उवाच-
कोणाऽन्तको रौद्रयमोऽथ ब्रभु:।
कृष्ण शनि: पिंगलमंद सौरि:।
नित्यं समृतो यो हरते च पीड़ां
तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय।।1।
सुरासुर: किंपुरुषा गणेंद्रा
गन्धर्वविद्याधरपन्नगाश्च।
पीड्यंति सर्वे विषमस्थितेन,
तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय।।2।।
नरा नरेन्द्रा : पशवो मृगेंद्रा
वन्याश्य ये कीटपतंगभृंगा।
पीड्यंति सर्वे विषमस्थितेन
तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय।।3।।
देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र
सेनानिवेशा: पुरपत्तनाति।
पीड्यंति सर्वे विषमस्थितेन
तस्मै नम : श्रीरविनंदनाय।।4।।
तिलैर्यवैर्माषगुडन्नदार्नै
लोहेन नीलाम्बरदानतो वा।
प्रीणात मंत्रैॢनजवासरे च
तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय।।5।।
प्रयागकूले यमुनातटे च
सरस्वती पुण्यजले गुहायाम्।
यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मरतस्मै नम: श्रीरविनंदनाय।।6।।
अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्ट-
स्तदीयवारे स नर: सुखी स्यात्।
गृहाद गतो यो न पुन: प्रयाति
तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय।।7।।
स्रष्टा स्यंभूर्भुवनतरस्य
त्राता हरि: संहरते पिनाकी।
एकस्त्रिधा ऋग्यजु: साममूॢत
तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय।।8।।
शन्यष्टकं य: प्रयत: प्रभाते
नित्यं सुपुत्रै: पशुबांधवैश्व।
पठेच्च सौख्यं भुवि भोगयुक्तं
प्राप्नोति निर्वाणपदं परं स:।।9।।
कोणस्थ: पिंगलो बभ्र: कृष्णा रौद्राऽन्तको यम:। सौरि:शनेश्चरो मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:।।10।। एतानि दश नामानि प्रातरुत्थाप य: पठेत्। शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद्भविष्यति।।11।।
इति श्रीदशरथप्रोक्तं शनैश्चरस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।